ज्यादा गंभीरता भी रोग को आमंत्रण देती है -स्वामी सत्यानंद सरस्वती पढ़े पूरी खबर…
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*ज्यादा गंभीरता भी रोग को आमंत्रण देती है -स्वामी सत्यानंद सरस्वती*
जावद -जीवन को अगर आनंद से भरना चाहते है जीवन को खेल समझना चाहिए एक अभिनय समझो बात बात पर गंभीर होने की आवश्यकता नहीं है गंभीरता रोग है उक्त बात चांडक परिवार द्वारा आयोजित संत सम्मान कार्यक्रम मै कहते हुए राष्ट्रीय संत स्वामी सत्यानंद जी सरस्वती द्वारा कहते हुए बताया कि जीवन में जो भी कुछ हो रहा है वह सहज स्वीकार है सुख भी स्वीकार है दुख भी स्वीकार है जीवन भी स्वीकार है मृत्यु हुई स्वीकार है यह दो है ही नहीं सुख-दुख दोनों स्वीकार हैं या फिर दोनों अस्वीकार हैं सुख तो स्वीकार है और दुख अस्वीकार है इससे तनाव होता है मान और अपमान दो नहीं है एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जीवन और मृत्यु दो नहीं है एक ही है जीवन के साथ ही मृत्यु है कोई जीवन को तो स्वीकार करे और मृत्यु को अस्वीकार करें तो तनाव होता ही ऐसा कोई अंधकार नहीं है जो प्रकाश से नहीं जुडा हो ऐसा कोई प्रकाश नहीं है जो अंधेरे से ना जुडा हो शांति की इच्छा ही अशांति का कारण है हमारी चाह ही दुख का कारण है नींद लाने का प्रयास ही नींद नहीं आने देता स्वस्थ रहने का जो अति पागलपन है वही बीमारी लाता है इसलिए जीवन के प्रति जो सहज स्वीकृति का भाव है इसी से परम विश्राम प्राप्त होता है ऐसा हो ऐसा ना हो ऐसा होना चाहिए था ऐसा क्यों हो गया यही तनाव का कारण है और तनाव सभी दुखों का कारण है जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण रखने से व्यक्ति तनाव मुक्त होता है जीवन में जितना भी श्रेष्ठ है वह निसर्ग से आता है ध्यान से आता है जितना भी कूड़ा कचरा है वह तनाव से आता है उक्त अवसर पर चांडक परिवार के मुखिया राधेश्याम चांडक,सत्यनारायण राठी, बनकट झवर,राजेंद्र पोरवाल, राजेश चांडक सहित परिवार जन मौजूद थे
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